कश्मीर पर एक बार फिर आतंकवाद का हमला, 26 नागरिकों की गई जान
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
 
                                    - संजोग या फिर एक सोची समझी साजिश,
- समय और सन्दर्भ पर उठे सवाल
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस भयावह हमले में कम से कम 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई। यह हमला न केवल मानवीय त्रासदी है, बल्कि इसके पीछे की टाइमिंग और व्यापक राजनीतिक-सामरिक संदर्भ भी कई अहम सवाल खड़े करते हैं।
कश्मीर में शांति की वापसी और पर्यटन की वापसी-
विगत वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के चलते कश्मीर में स्थिति काफी हद तक सामान्य होती दिखाई दे रही थी। शांतिपूर्वक विधानसभा चुनाव संपन्न हुए थे और घाटी में पर्यटकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिल रही थी। यह समय कश्मीर पर्यटन के चरम का होता है, और स्थानीय लोगों के लिए आर्थिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन इस हमले ने उस सकारात्मक माहौल को गंभीर झटका दिया है।
भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर काफी सक्रिय-
इस हमले के समय भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर काफी सक्रिय था। एक ओर अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत दौरे पर थे और जयपुर में भारत-अमेरिका संबंधों को नई दिशा देने वाले वक्तव्य दे रहे थे। उन्होंने भारत को अमेरिका का निकटतम सैन्य सहयोगी बताते हुए दोनों देशों के बीच सामूहिक रक्षा, व्यापार और रणनीतिक संबंधों की बात दोहराई।
दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की आधिकारिक यात्रा पर थे, जहां भारत-सऊदी रणनीतिक साझेदारी को ऊर्जा, निवेश और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में और सुदृढ़ करने के प्रयास चल रहे थे। यह दौरा भारत की खाड़ी क्षेत्र में कूटनीतिक गहराई को दिखाता है। लेकिन ठीक उसी समय पहलगाम में हुआ आतंकी हमला यह संकेत देता है कि भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती प्रभावशीलता कुछ तत्वों को रास नहीं आ रही है।
क्या है पाकिस्तान की भूमिका-
इस तरह के हमलों की टाइमिंग पहले भी देखी गई है। उदाहरण के लिए, 20 मार्च 2000 को, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा से ठीक एक दिन पहले चित्तीसिंघपोरा (अनंतनाग) में 36 सिख नागरिकों की हत्या कर दी गई थी। वह हमला भी पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों से जोड़ा गया था, और तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यह मुद्दा क्लिंटन के समक्ष उठाया था।
हाल ही में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने एक बयान में कश्मीर को इस्लामाबाद की "गले की नस" बताया। उनका यह बयान और उसके कुछ दिनों बाद ही हुआ यह हमला, यह संदेह मजबूत करता है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूह इस क्षेत्र में भारत की स्थिरता और विकास को नुकसान पहुंचाने की साज़िश रच रहे हैं।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया-
हमले के बाद पाकिस्तान ने औपचारिक रूप से चिंता जताई है, लेकिन इस संवेदनशील क्षण पर भी उसका रवैया आपत्तिजनक रहा। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बयान में भारत के संप्रभु क्षेत्र के लिए अनुचित शब्दावली का प्रयोग किया, जो उसकी मंशा पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।
यह हमला केवल निर्दोष लोगों की हत्या नहीं है, बल्कि यह भारत की आंतरिक स्थिरता, अंतरराष्ट्रीय छवि और कश्मीर में लौटती शांति को चुनौती देने का संगठित प्रयास है। यह घटना स्पष्ट संकेत देती है कि आतंकवाद से लड़ाई केवल सुरक्षा बलों की नहीं, बल्कि एक सामूहिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रयास की मांग करती है। साथ ही, यह भारत की कूटनीतिक और आंतरिक मजबूती की परीक्षा का भी क्षण है।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

 
                                                                                                                                             
                                                                                                                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                            