ईद-उल-अजहा यानी बकरीद- मोरक्को का बकरीद को लेकर बड़ा फैसला, नहीं दी जाएगी कोई कुर्बानी

ईद-अल-अजहा यानी बकरीद इस महीने जून की 6 और 7 तारीख को मनाई जाएगी। इस दिन इस्लाम को मानने वाले बकरे या किसी और जानवर की कुर्बानी देते हैं।

Jun 3, 2025 - 15:07
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ईद-उल-अजहा यानी बकरीद- मोरक्को का बकरीद को लेकर बड़ा फैसला, नहीं दी जाएगी कोई कुर्बानी
Eid-al-Adha i.e. Bakrid- Morocco takes a big decision regarding Bakrid, no sacrifice will be made
  • इस दिन दी जाती है बकरे या किसी और जानवर की बली,
  • पूरे देश में चल रही बकरों को लेकर छापेमारी

ईद-उल-अजहा यानी बकरीद इस महीने जून की 6 और 7 तारीख को मनाई जाएगी। इस दिन इस्लाम को मानने वाले बकरे या किसी और जानवर की कुर्बानी देते हैं। इसी मान्यता को लेकर एक बड़े मुस्लिम देश ने बड़ा फैसला लिया है। यह फैसला मोरक्को ने लिया है जहां 99 प्रतिशत मुस्लिम आबादी मौजूद है। फैसले में कहा गया है कि कोई भी नागरिक ईद पर बकरे या किसी और जानवर की कुर्बानी नहीं देगा। जिसके चलते फैसले के बाद से पुरे देश में छापेमारी करके बकरों को ढूंढा जा रहा है। 

फरमान के बाद लोगों में गुस्सा-

मोरक्को के राजा मोहम्मद-VI के इस फरमान से लोगों में बहुत गुस्सा है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इस आदेश के बाद से ही सुरक्षाबलों ने कई शहरों में कुर्बानी रोकने की कार्रवाई शुरू कर दी है। इस्लाम में बकरीद के दिन कुर्बानी देने का बहुत महत्व होता है। इसका मकसद अल्लाह की राह में उस चीज की कुर्बानी के महत्व को समझना है, जो आपको प्यारी हो। बकरीद मुसलमानों को अपना कर्तव्य निभाने और अल्लाह पर विश्वास रखने का पैगाम देती है।  

क्यों लिया कुर्बानी पर रोक का फैसला?

मोहम्मद-VI ने का यह फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि देश में भयंकर सूखे के चलते पशुओं की संख्या में कमी हो रही है। जिसके चलते राजा ने कहा कि इस हफ्ते आ रही बकरीद के त्योहार को लोग इबादत और दान करके मनाएं और कुर्बानी से बचें। राजा के इस फैसले के बाद अधिकारियों ने जानवरों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया और चोरी छिपे कुर्बानी के लिए लाई गई भेड़ों को भी घरों से ही जब्त कर लिया गया। सरकार की इस कार्रवाइयों से लोग बहुत नाराज हैं और सड़क पर विरोध प्रदर्शन के लिए उतर आए है। 

इस फैसले पर क्या सोचता है मुस्लिम वर्ल्ड-

मुस्लिम वर्ल्ड ने भी मोहम्मद-VI के इस फैसले पर आपत्ति जताई है और उन्होंने इसको खतरनाक मिसाल बताया है। उनका ये भी कहना है कि धार्मिक रीति-रिवाजों में सरकार दखल दे रही है। हालांकि, सर्कार के इस फैसले से कुछ लोग सहमत हैं और आर्थिक और स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए फैसले का बचाव कर रहे हैं।