अकबर ने भी माना महाराणा प्रताप जैसा योद्धा कोई नहीं

जब भी वीरता, पराक्रम और साहस का जिक्र होता है, महाराणा प्रताप की कहानियां याद आती हैं। एक ऐसा योद्धा जिसने कभी अपने दुश्मनों के आगे घुटने नहीं टेके।

May 28, 2025 - 16:54
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अकबर ने भी माना महाराणा प्रताप जैसा योद्धा कोई नहीं
Akbar also admitted that there is no warrior like Maharana Pratap

महाराणा प्रताप सिंह जयंती विशेष 

जब भी वीरता, पराक्रम और साहस का जिक्र होता है, महाराणा प्रताप की कहानियां याद आती हैं। एक ऐसा योद्धा जिसने कभी अपने दुश्मनों के आगे घुटने नहीं टेके। अपने साम्राज्य के प्रति उनकी निष्ठा ऐसी थी कि उन्होंने मुगलों को भी धूल चटा दी। उन्होंने सालों संघर्ष किया, लेकिन हार नहीं मानी। उदयपुर मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के राजा महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया की जयंती 9 मई को पड़ती है, लेकिन उनकी जन्मतिथि के अनुसार उनका जन्म ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था। जिसके चलते महाराणा प्रताप की जयंती 29 मई को मनाई जा रही है। बच्चों ने राजपूतों के गौरव महाराणा प्रताप की कहानियां अपनी किताबों में पढ़ी हैं। इतिहास में महाराणा प्रताप सिंह की नीतियां सराहनीय रही हैं।
 

हर युद्ध में दिखाया अद्भुत साहस

 
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह ने अपने साहस और वीरता का ऐसा परिचय दिया कि मुगलों की विशाल सेना मेवाड़ की छोटी सी सेना से हार गई। उन्होंने मुगलों को हराने का हर संभव प्रयास किया। युद्ध स्थल राजस्थान के गोगुंडा के पास हल्दीघाटी में एक संकरा पहाड़ी दर्रा था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने 3000 घुड़सवारों और 400 भील तीरंदाजों की सेना का नेतृत्व किया था। मुगलों का नेतृत्व आमेर के राजा मानसिंह ने किया था। तीन घंटे तक चले इस युद्ध में हजारों की संख्या में लोग मारे गए। मुगलों की लाख कोशिशों के बाद भी महाराणा प्रताप इस युद्ध में विजयी रहे। इसके अलावा अन्य युद्धों में भी इन्होंने अपनी अलग ही छाप छोड़ी। 
दिवेर-छापली का युद्ध भी सबसे खास युद्धों में से एक है। यह एक ऐसा युद्ध है जिसमें महाराणा प्रताप ने अपने खोए हुए राज्यों को वापस पा लिया था। यहां भी उनका शौर्य देखते ही बना था। 
 

महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर भी हुआ स्तब्ध 

इतिहास कहता है कि अकबर महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु था, लेकिन दोनों के बीच कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं था। उनके बीच की लड़ाई सिद्धातों और मूल्यों की लड़ाई थी। अकबर जहां अपने क्रूर साम्राज्य का विस्तार चाहता था, वहीं महाराणा प्रताप अपनी मातृभूमि भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहे थे। जब अकबर को महाराणा प्रताप की मृत्यु की खबर लगी, तो वह बहुत दुःखी हुआ। अकबर महाराणा के गुणों और सिद्धांतों का मुरीद था। वह यह जानता था कि उनके जैसा योद्धा कोई नहीं हो सकता। महाराणा प्रताप की मौत की खबर से अकबर की आंखों में आंसू आ गए और वह रहस्यमय तरीके से मौन हो गया।