जबलपुर शहर है वीरांगना रानी दुर्गावती का शहादत स्थल
रानी दुर्गावती की जो निडर इतनी की शेर का शिकार कर लें। योद्धा ऐसी कि 52 में से 51 युद्धों में जीत हासिल की। मुगलों का डटकर सामना किया। हर बार उन्हें मात दी।

निडर, युद्ध भूमि पर दुश्मन को नतमस्तक होने पर मजबूर कर देने वाली, वीरांगना जिसने दुष्टों का नाश करने के लिए जन्म लिया और जन्म भी दुर्गाष्टमी पर हुआ। हम बात कर रहे हैं रानी दुर्गावती की जो निडर इतनी की शेर का शिकार कर लें। योद्धा ऐसी कि 52 में से 51 युद्धों में जीत हासिल की। मुगलों का डटकर सामना किया। हर बार उन्हें मात दी। 5 अक्टूबर 1524 में जन्म लेने वाली रानी दुर्गावती का नाम दुर्गा इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने दुर्गाष्टमी के दिन जन्म लिया और वो अपने व्यवहार में भी मां दुर्गा की तरह ही पराक्रमी रहीं। 24 जून 1564 को उनका बलिदान दिवस मनाया जाता है। यही वो दिन हैं जिस दिन उन्होंने अपना बलिदान दिया और उनकी कहानी इतिहास बन गई।
रानी दुर्गावती कलिंजर के राजा कीरत सिंह और उनकी पत्नी कमलावती के घर में जन्मी थीं। राजा संग्रामशाह और उनके पुत्र दलपत शाह वीरांगना दुर्गावती के सौंदर्य, शिष्टता, मधुरता और पराक्रम से इतने प्रभावित हुए कि दलपत शाह ने दुर्गावती से विवाह कर लिया। शादी के महज 4 साल बाद ही दलपत शाह की मौत हो गई और रानी दुर्गावती ने तीन वर्ष के बेटे के साथ गौंडवाना साम्राज्य की कमान संभाल ली।
रानी की रणनीति कुछ ऐसी थी
रानी दुर्गावती की युद्ध नीति अचानक किए गए आक्रमणों पर आधारित रहती थी। वह दोनों हाथों से तीर और तलवार चलाने में माहिर थीं। जब उन्होंने गोंडवाना साम्राज्य की बागडोर संभाली, तब उन्होंने 52 गढ़ों की संख्या बढ़ाकर 57 कर दी और परगनों की संख्या भी 57 कर दी। उनकी सेना में 20,000 घुड़सवार, 1,000 हाथी और बड़ी संख्या में पैदल सैनिक शामिल थे। गोंडवाना ऐसा पहला भारतीय साम्राज्य था जहाँ महिला सैनिकों की एक अलग टुकड़ी थी, जिसकी अगुवाई रानी की बहन कमलावती और पुरागढ़ की राजकुमारी करती थीं। यह प्रसिद्ध ऐतिहासिक युद्ध जबलपुर के निकट स्थित मदन महल किले में लड़ा गया था, जहां रानी दुर्गावती वीरगति को प्राप्त हुई थीं। आज उसी स्थान पर उनकी स्मृति में एक समाधि बनी हुई है।