शहर के तन्मय दुबे ने विदेश में जीती आयरन मैन प्रतियोगिता
हाल ही में ऑस्ट्रिया के शहर क्लागेनफ़र्ट में सम्पन्न हुई एक दिन में पूर्ण होने वाली विश्व की सबसे मुश्किल एंड्यूरेंस इवेंट आयरनमैन कर्नटेन को निर्धारित समय से पहले पूरा करके तन्मय दुबे बने आयरनमैन। इस प्रतियोगिता की खासियत यह है कि इसमें एक ही दिन में विभिन्न किस्म के कठिन लक्ष्य प्राप्त करने के दौरान मानव शरीर की सहनशक्ति की सीमाओं की कड़ी परीक्षा ली जाती है।
 
                                    हाल ही में ऑस्ट्रिया के शहर क्लागेनफ़र्ट में सम्पन्न हुई एक दिन में पूर्ण होने वाली विश्व की सबसे मुश्किल एंड्यूरेंस इवेंट आयरनमैन कर्नटेन को निर्धारित समय से पहले पूरा करके तन्मय दुबे बने आयरनमैन। इस प्रतियोगिता की खासियत यह है कि इसमें एक ही दिन में विभिन्न किस्म के कठिन लक्ष्य प्राप्त करने के दौरान मानव शरीर की सहनशक्ति की सीमाओं की कड़ी परीक्षा ली जाती है। इस मुश्किल प्रतियोगिता में सभी प्रतिभागियों को खुले समुद्र के बर्फीले ठंडे पानी में 3.8 किलोमीटर तैराकी करने के तुरंत बाद, 2000 मीटर तक की ऊंचाई वाले इलाके के टेढ़े -मेढ़े रास्तों पर 180 किलोमीटर की साइकिल रेस लगानी होती है और उसके बाद बिना रुके 42.2 किलो मीटर की मैराथन दौड़ लगानी पड़ती है। इन तीनों चरणों को निर्धारित समय में सफलता से पूर्ण करने के बाद मिलता है आयरन मेन का खिताब। कुल 223 किलोमीटर लंबी इस प्रतियोगिता को पूर्ण करने के लिए आयोजकों द्वारा 17 घंटे का समय निर्धारित किया गया था, लेकिन उत्साह से भरे तन्मय ने 15 घंटे 58 मिनट में ही इसे समाप्त कर दिखाया।
मध्यप्रदेश से रहा है गहरा नाता
मध्यप्रदेश के जबलपुर के एक मोहल्ले में माता संगीता दुबे और नौकरी पेशा पिता नरेन्द्रनाथ के घर 14 अगस्त 1980 को जबलपुर में जन्मे 44 वर्षीय तन्मय ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा क्राइस्ट चर्च स्कूल से पूर्ण की और उसके बाद इंजीनियरिंग की शिक्षा भी जबलपुर से ही प्राप्त की। शिक्षा पूर्ण करने के बाद तन्मय ने विश्व की नामचीन आईटी कम्पनीयों में काम किया और इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि उन्हें तो जीवन में कुछ और ही बनना है। जिसके चलते उन्होंने रनिंग और सायकलिंग शुरू की। एक इंटरव्यू के दौरान उनके बालसखा शरद सिक्का ने बताया कि बचपन से ही तन्मय कुछ अलग करना चाहता था, लेकिन बहाव के साथ बहते हुए उसने इंजीनियरिंग तो कर ली और नौकरी भी की। लेकिन उसने अपने सपनों को मरने नहीं दिया। हेवलेट पेकोर्ड कंपनी में बिजनेस मेनेजर के रूप में काम करते हुए तन्मय ने इंदौर और भोपाल में भी कई वर्ष बिताए है।
पंचर बनाने वाले ने दी प्रेरक दिशा
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक शुरुआती दौर का एक किस्सा सुनाते हुए तन्मय कहते हैं कि एक बार मैं अपनी सायकल पर एक लंबी यात्रा का लक्ष्य लेकर घर से निकला। इस दौरान एक चढ़ाई भरे रास्ते पर मेरी सायकल पंचर हो गई और पंचर की दुकान 3 किलोमीटर आगे थी। किसी तरह अपनी शारीरिक शक्ति जुटाकर मैं वहाँ पहुँचा और पंचर बनाने के लिए सायकल उस व्यक्ति के हवाले की। लंबी चढ़ाई पर पंचर सायकल घसीटते हुए आगे जाने की मेरी हिम्मत जवाब दे चुकी थी। सायकल ठीक होते ही मैंने घर वापसी की दिशा में सायकल घुमाई तो उस पंचर बनाने वाले ने मुझसे कहा भईया आपको तो उधर जाना था इधर कहां जा रहे हो, यह सुनते ही मेरी सोच बदली और मैं अपने लक्ष्य की ओर चल पड़ा। यदि उस दिन उस सायकल ठीक करने वाले ने मुझे सही राह नहीं बताई होती तो शायद मैं आज इस मुकाम तक नहीं पहुंचता।
तन्मय ने बताया कि इस प्रतियोगिता में आने वाली कठिनाईयों का सामना करने में स्वयं को सक्षम बनाने के लिए मैं पिछले एक साल से तैयारी कर रहा था। इस तैयारी में मैं हर हफ़्ते 12-14 घंटे प्रेक्टिस करता था। जिसमें 2-3 घंटे तैराकी, 4-5 घंटे साइकिलिंग और 3-5 घंटे की रनिंग शामिल होती थी। हफ़्ते में 2 बार जिम में 40-60 मिनट की स्ट्रेंथ ट्रेनिंग उनकी विजयी रणनीती का हिस्सा थी।  इससे पहले 2019 में ऑस्ट्रेलिया में तन्मय ने 70.3 किलोमीटर लंबी प्रतियोगिता जिसे हाफ आयरनमेन कहा जाता है में हिस्सा लिया था, लेकिन सफलता नहीं मिली थी। इस वर्ष ऑस्ट्रिया में भारत से अपने आयु वर्ग में फुल आयरनमेन के इस पड़ाव तक पहुंचने वाले वे एक मात्र पुरुष प्रतिभागी रहे हैं। तन्मय अपनी इस सफलता को उन सभी कॉर्पोरेट एम्प्लॉईस के नाम समर्पित करना चाहते है जो नौकरी में परफॉर्मनस के दबाव और काम के लंबे घंटों की मांग के चलते अपने शरीर और स्वास्थ का ध्यान रखने से कतराते हैं।
वर्तमान में तन्मय एक बहुराष्ट्रीय कंपनी अमेजन वेब सर्विस में सीनियर पार्टनर डेवलपमेंट मैनेजर के रूप में कार्यरत है और एक प्रसिद्ध लेखक भी हैं। उनके द्वारा लिखी हुई 6 किताबें बाजार में अपनी धूम मचा रही हैं। उनका मानना है कि उनकी यह उपलब्धि किसी व्यक्ति विशेष की नहीं है बल्कि इस बात का प्रमाण है कि कोई भी इंसान अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से , उम्र के किसी भी पड़ाव में अपनी मेहनत और लगन से जो चाहे वो पा सकता है।                        
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

 
                                                                                                                                             
                                                                                                                                             
                                                                                                                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                            