चार बेटे भी मिलकर नहीं संभाल पा रहे अपनी मां को, हाईकोर्ट ने बेटों को लगाई फटकार, नरसिंहपुर का मामला
एक मां चार बेटों को पाल लेती है, लेकिन चार बेटे मिलकर एक मां का पालन नहीं कर पा रहे है। नरसिंहपुर की एक मां की ऐसी ही कहानी है। जिसके भरण-पोषण के लिए मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर अपर कलेक्टर द्वारा पारित आदेश के खिलाफ एक बेटा हाईकोर्ट पहुंच गया |
 
                                    एक मां चार बेटों को पाल लेती है, लेकिन चार बेटे मिलकर एक मां का पालन नहीं कर पा रहे है। नरसिंहपुर की एक मां की ऐसी ही कहानी है। जिसके भरण-पोषण के लिए मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर अपर कलेक्टर द्वारा पारित आदेश के खिलाफ एक बेटा हाईकोर्ट पहुंच गया और याचिका में दलील दी कि उसे मां द्वारा किसी तरह की सम्पत्ति नहीं दी गई और वह भरण पोषण के लिए उत्तरदायी नहीं है। इस पर हाईकोर्ट ने क्लास लगाते हुए कहा कि बच्चे द्वारा माता-पिता को गुजारा भत्ता देने का सवाल इस बात पर निर्भर नहीं करता कि उन्होंने बच्चों को कितनी सम्पत्ति दी है। यह बच्चों का कर्तव्य है कि वे अपने माता-पिता का भरण-पोषण करें।
भरण-पोषण प्रदान करने के लिए उत्तरदायी नहीं-
यह अहम फैसला जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत पारित आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए सुनाया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह अपनी मां को भरण-पोषण प्रदान करने के लिए उत्तरदायी नहीं है क्योंकि उसने एक भी टुकड़ा नहीं दिया है।
चारों बेटों को देना होगा गुजरा भत्ता-
इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि अपने माता-पिता का भरण-पोषण करना बच्चों का कर्तव्य है। यदि याचिकाकर्ता भूमि के असमान वितरण से व्यथित है, तो उसके पास सिविल मुकदमा दायर करने का उपाय है, लेकिन वह अपनी मां को भरण-पोषण का भुगतान करने के अपने दायित्व से नहीं भाग सकता। इसी के साथ एसडीएम कोर्ट ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश और एडीएम नरसिंहपुर के संशोधित आदेश को बहाल रखते हुए मां को 8 हजार रुपए यानी की उनके चारों बेटों को 2-2 हजार रुपए के गुजारे भत्ते को यथावत रखने का आदेश दिया।
मां ने भी बेटों के खिलाफ पेश किया आवेदन-
एक बेटे द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान मां ने भी बेटों के खिलाफ हाईकोर्ट में आवेदन पेश किया। उसने बताया कि उसके पास जो भी जमीन थी, यहां तक खरीद की जमीन भी बेटों के इस आश्वासन के चलते बांट दी थी कि वे सभी उसका ख्याल रखेंगे और भरण-पोषण करेंगे। लेकिन अब चारों ही बेटे इससे इनकार कर रहे हैं। यहां तक कि 2023 में पहले एसडीएम गाडरवारा ने 12 हजार रुपए फिर एडीएम ने संशोधित आदेश के द्वारा 8 हजार रुपए यानी प्रति पुत्र 2-2 हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाने के आदेश पारित किए जाने के बाद भी उसे कोई रकम नहीं दी गई। याचिकाकर्ता बेटे ने अपनी वित्तीय अक्षमता का हवाला दिया। हालाँकि, अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया और दोहराया कि भरण-पोषण प्रदान करने का कर्तव्य संपत्ति वितरण पर निर्भर नहीं करता है। हाईकोर्ट ने आगे जीवन यापन की बढ़ती लागत और मुद्रास्फीति पर विचार करते हुए रुपये को 8 हजार रुपए के गुजारा भत्ता को उचित ठहराया। मूल्य सूचकांक के साथ-साथ दैनिक जरूरतों के सामान की कीमत पर विचार करते हुए, न्यायालय का मानना है कि उसके सभी चार बेटों द्वारा समान हिस्से में भुगतान किया जाने वाला 8,000 रुपये का मासिक रखरखाव उच्च स्तर पर नहीं कहा जा सकता है। उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता और उसके भाइयों को अपनी मां के भरण-पोषण में योगदान देने के पिछले आदेशों की पुष्टि करते हुए याचिका खारिज कर दी।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

 
                                                                                                                                             
                                                                                                                                             
                                                                                                                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                             
                                            