30 अप्रैल को मनाई जाएगी अक्षय तृतीया, गुड्डा-गुड़िया का होगा विवाह
अक्षय तृतीया तिथि का बहुत महत्व है। खास बात यह है कि इस दिन किए गए किसी भी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त की जरूरत नहीं होती है।

अक्षय का अर्थ है जिसका कभी क्षय नहीं होता, या फिर जो कभी समाप्त न हो। अक्षय तृतीया तिथि का बहुत महत्व है। खास बात यह है कि इस दिन किए गए किसी भी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त की जरूरत नहीं होती है। वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाने वाली अक्षय तृतीया अपने आप में बेहद खास दिन होता है। इस दिन स्वयं सिद्ध योग स्थापित होता है। इस तिथि को अमोघ तिथि भी कहा जाता है। इस दिन शादी करने के लिए सबसे बेहतर योग माना जाता है। इसके साथ ही इस दिन किए गए शुभ कार्य में अक्षय फल की प्राप्ती होती है। 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया मनाई जा रही है। इसे लेकर बाजार से लेकर घरों तक में उत्साह देखा जा रहा है।
इस दिन गुड्डा-गुड्डी का विवाह करने की पौराणिक परंपरा है। यही वजह है कि इन दिनों बाजारों में मिट्टी के आकर्षक गुड्डा-गुड़िया मिल रहे हैं। लोग इनकी शादी धूमधाम से करवाते हैं। विवाह की तमाम रस्मों को पूरा किया जाता है। इनके विवाह को लेकर बच्चों में सबसे ज्यादा उत्साह देखने को मिलता है। वे गुड्डा-गुड़िया को सजाते हैं और उनके विवाह की तैयारियां करते हैं। इस तरह से इसे सेलिब्रेट किया जाता है।
भगवान परशुराम का प्राकट्योत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु परशुराम भगवान का अवतरण हुआ था। यही वजह है कि इस को परशुराम जी का प्राकट्योत्व मनाया जाता है। इनके साथ ही ब्रह्मा जी के पुत्र वैभव का भी अवतरण इसी दिन हुआ था।
भगवान बद्रीनारायण के खुलते हैं पट
अक्षय तृतीया को आखा तीज भी कहा जाता है। इस दिन चार धामों में से एक भगवान बद्रीनारायण के पट खुलते हैं। इसके साथ ही साल में एक बार वृंदावन में बांके बिहारी जी के चरणों के दर्शन कराए जाते हैं। जिसके लिए कई श्रद्धालु इस तिथि पर यहां आते हैं और दर्शन लाभ लेते हैं।
द्वापर युग का हुआ समापन
अक्षय तृतीया को ही युगादि तिथि कहा जाता है। इस तिथि पर द्वापर युग का समापन हुआ या फिर यह भी कहा जा सकता है कि इस दिन से ही त्रेता युग और सतयुग का आरंभ हुआ। इस दिन लक्ष्मी जी का पूजन करने से मां लक्ष्मी की सदैव कृपा बनी रही हैं और संपन्नता आती है।