शरणार्थियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी- भारत कोई धर्मशाला नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने शरणार्थियों के मुद्दे पर महत्वपूर्ण टिप्पणी दी है, जिसमें कहा गया कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां हर देश से आए शरणार्थियों को शरण दी जाए।

May 19, 2025 - 15:08
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शरणार्थियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी- भारत कोई धर्मशाला नहीं
Supreme Court's comment on refugees- India is not a Dharamshala

श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थी को लेकर दी गई टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने शरणार्थियों के मुद्दे पर महत्वपूर्ण टिप्पणी दी है, जिसमें कहा गया कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां हर देश से आए शरणार्थियों को शरण दी जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत 140 करोड़ लोगों के साथ पहले से ही कई समस्याओं का सामना कर रहा है, और इसलिए हर जगह से आए शरणार्थियों को शरण नहीं दे सकता। यह टिप्पणी कोर्ट ने श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थी को हिरासत में लिए जाने के मामले में सुनवाई करते हुए की।

कोर्ट ने याचिका पर हस्तक्षेप करने से किया इंकार

सुप्रीम कोर्ट में श्रीलंका के एक नागरिक की हिरासत के खिलाफ याचिका दायर की गई थी, लेकिन कोर्ट ने इस पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। कोर्ट मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता को UAPA (गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम) के तहत 7 साल की सजा पूरी होने के बाद तुरंत भारत छोड़ देना चाहिए।

'आपको यहां बसने का क्या अधिकार है'-

श्रीलंका के याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह एक श्रीलंकाई तमिल हैं, जिन्होंने भारत में वीजा पर प्रवेश किया था और अब उनके देश में उनकी जान को खतरा है। याचिकाकर्ता पिछले तीन सालों से बिना निर्वासन प्रक्रिया के नजरबंद हैं। इस पर जस्टिस दीपांकर दत्ता ने पूछा, "यहां बसने का आपका क्या अधिकार है?" जब वकील ने कहा कि वह एक शरणार्थी हैं, तो जस्टिस दत्ता ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत भारत में बसने का मौलिक अधिकार केवल नागरिकों को ही प्राप्त है। जब वकील ने यह कहा कि याचिकाकर्ता को अपने देश में जान का खतरा है, तो जस्टिस दत्ता ने कहा, "किसी और देश में जाइए।"

क्या है पूरा मामला-

यह मामला साल 2015 का है, जब याचिकाकर्ता को दो अन्य लोगों के साथ LTTE (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तामिल ईलम) ऑपरेटिव होने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था। 2018 में, याचिकाकर्ता को UAPA की धारा-10 के तहत अपराध का दोषी ठहराया गया था और उसे 10 साल की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, 2022 में मद्रास हाई कोर्ट ने उसकी सजा घटाकर 7 साल कर दी, लेकिन यह आदेश भी दिया कि उसे अपनी सजा पूरी करने के बाद तुरंत भारत छोड़ देना चाहिए और शरणार्थी शिविर में रहना चाहिए।